कोई भी सुरक्षा व्यवस्था तभी तक पूरी तरह चुस्त लगती है, जब तक हमलावर उसमें सेंध न लगा दें.
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप पर चली गोलियाँ इसी सिलसिले की एक ताज़ा कड़ी है.
ट्रंप पर हुए हमले के बाद अमेरिका में सुरक्षा में हुई चूक की गहन जाँच तो चल ही रही है, साथ ही दुनिया में भर में वीआईपी सुरक्षा में लगी एजेंसियों ने भी अपनी व्यवस्था का रिव्यू करना शुरू किया है.भारत में प्रधानमंत्री की सुरक्षा को दुनिया की सबसे मज़बूत सुरक्षा व्यवस्थाओं में माना जाता है, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सुरक्षा कवच को मज़बूत बनाने की ज़रूरत महसूस हुई और उसे लगातार अपग्रेड किया जाता रहा है.भारत में ऐतिहासिक तौर पर कई ऐसी ग़लतियाँ हुईं जब प्रधानमंत्री पद पर आसीन व्यक्ति की जान को ख़तरा पैदा हुआ और सुरक्षा एजेंसियों को शर्मिंदगी उठानी पड़ी. आइए ऐसी ही कुछ घटनाओं पर नज़र डालते हैं.1967 के आम चुनाव के दौरान जैसे ही इंदिरा गाँधी ने भुवनेश्वर में चुनाव सभा को संबोधित करना शुरू किया भीड़ में मौजूद कुछ लोगों ने मंच पर पत्थर फेंकने शुरू कर दिए.एक पत्थर सुरक्षाकर्मी के माथे पर लगा और दूसरा एक पत्रकार के पैर पर. ये देखते ही दो सुरक्षाकर्मी इंदिरा गांधी के अगल-बगल खड़े हो गए.
सुरक्षा अधिकारियों ने उनसे अनुरोध किया कि वो अपना भाषण तुरंत समाप्त करें लेकिन उन्होंने उनकी बात नहीं मानी. इस बीच रह-रह कर मंच पर पत्थर फेंके जाते रहे. थोड़ी देर बाद इंदिरा अपना भाषण समाप्त कर मंच पर रखी कुर्सी पर बैठ गईं.
जैसे ही उन्होंने अपना भाषण समाप्त किया स्थानीय कांग्रेस उम्मीदवार ने बोलना शुरू कर दिया और मंच पर पत्थरों की बौछार फिर से शुरू हो गई.1984 में किस तरह इंदिरा गांधी के ख़ुद के सुरक्षाकर्मियों ने उनकी हत्या की उस पर काफ़ी कुछ लिखा जा चुका है. उस घटना को अभी दो साल भी नहीं हुए थे कि राजीव गांधी को जान से मारने की कोशिश हुई.राजीव गांधी के सिर पर वार करने की कोशिश की गई थी लेकिन उन्होंने अपने पीछे होने वाली हरकत को भांप लिया इसलिए उन्हें ज़्यादा चोट नहीं आई.
इस हमले के बाद श्रीलंका की सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को काफ़ी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था.