जल रही है, उसकी सैंकड़ों साल पुराने आपसी सद्भाव की नींव.जल रही है अलग-अलग समुदायों के बीच हँसी-ख़ुशी साथ रहने की डोर भी.
और जल कर राख हो रहा है, एक सपना कि पुराने गिले-शिकवे मिटा कर साथ रहेंगे मैतेई, कुकी और नगा समाज के लोग.
आपसी भरोसा कम हुआ है और नाउम्मीदी बेपनाह है.
तो सच ये है कि भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में जातीय हिंसा भड़के हुए डेढ़ महीने से ज़्यादा हो चुका है लेकिन हालात वैसे ही तनावपूर्ण बने हुए हैं.
मैतेई और कुकी समुदाय के बीच जारी इस हिंसा में अब तक 100 से ज़्यादा लोगों की जान गई है और 390 लोग घायल हुए हैं.
लेकिन हिंसा थम नहीं रही है और स्थानीय लोगों का सब्र ख़त्म सा हो रहा है.
मणिपुर का मैतेई समुदाय खुद को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग कर रहा है और यही मांग आगे चलकर पूरे विवाद की तात्कालिक वजह बनी.
तीन मई से लेकर छह मई तक प्रदेश में जम कर हिंसा हुई, जिसमें मैतेई लोगों ने कुकी पर और कुकी लोगों ने मैतेई के ठिकानों को निशाना बनाया.
मणिपुर इस समय दो टुकड़ों में बँट सा गया है.
एक हिस्सा मैतेई लोगों के पास है, दूसरा कुकी लोगों के पास.
हिंसा का जिस तरह का मंज़र दिखता है, वो एक दो चार दिन का नहीं, हफ़्तों तक चली हिंसा है, जिसमें घर बर्बाद हो गए हैं, लोग-बाग तबाह हो गए हैं, गांव के गांव उजड़ गए हैं.
जिस तरह की फ़ॉल्टलाईन्स अब यहाँ दिख रही हैं, उससे ऐसा लगता है कि ये दरार लंबे समय के लिए पड़ चुकी है.
आज़ादी के बाद से ईसाई धर्म मानने वाले कुकी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला हुआ है जबकि मैतई हिंदू समुदाय में कुछ को आरक्षण नहीं मिला जबकि कुछ अनुसूचित जाति बने और कुछ को ओबीसी का दर्जा मिला.
झगड़े की वजह यही है, क्योंकि मैतेई लोग कुकी इलाक़ों में ज़मीन नहीं ख़रीद सकते और अब वे भी जनजाति का दर्जा चाहते हैं.
ज़ाहिर है, मसला ज़मीन पर अधिकार का है. 28 लाख की आबादी में बहुसंख्यक मैतेई घाटी में रहते रहे हैं जबकि कुकी आबादी चार पहाड़ी ज़िलों में बसी हुई है.
इस हिंसा में एक दूसरे के यहां जा बसे दोनों समुदाय के लोग शिकार हुए हैं. वैसे राज्य में मैतई मुसलमान और नगा भी हैं जो इस हिंसा से अछूते रहे.