महान स्वतंत्रता सेनानी और भारत रत्न से सम्मानित खान अब्दुल गफ्फार खान को “सीमान्त गांधी”, “फ्रंटियर गांधी”, “बच्चा खाँ” तथा “बादशाह खान” के नाम से भी पुकारा जाता है, । खान अब्दुल गफ्फार खान ने अपनी 98 वर्ष की जिंदगी में कुल 35 साल जेल में गुजार दी। उन्होंने ना केवल ब्रिटिश सरकार से भारत की आजादी के लिए संघर्ष किया बल्कि वे ‘स्वतंत्र पख्तूनिस्तान’ आंदोलन के प्रणेता भी थे।
ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान का जन्म 6 फरवरी 1890 को पेशावर (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था
महात्मा गांधी की तरह अहिंसा के रास्ते पर चलने के कारण खान अब्दुल गफ्फार खान को फ्रंटियर गांधी(सीमान्त गांधी) के उपनाम से पुकारा जाता था।
अंग्रेजों से आजादी के साथ-साथ एक संयुक्त, स्वतन्त्र और धर्मनिरपेक्ष भारत बनाने के लिए उन्होंने ‘खुदाई खिदमतगार’ नामक सामाजिक संगठन प्रारंभ किया जिसे ‘सुर्ख पोश’ भी कहा गया। खुदाई खिदमतागर, गांधी जी के अहिंसात्मक आंदोलन से प्रेरित था। खान अब्दुल गफ्फार खान ने कांग्रेस के समर्थन से भारत के पश्चिमोत्तर सीमान्त प्रान्त में ऐतिहासिक ‘लाल कुर्ती’ आन्दोलन चलाया।
नमक सत्याग्रह में खान अब्दुल गफ्फार खान के नेतृत्व में खुदाई खिदमतगार के समर्थन में बड़ी संख्या में लोग पेशावर में प्रदर्शन में शामिल हुए। अंग्रेजों ने इन निहत्थे लोगों पर मशीन गन से गोली चलाने का आदेश दे दिया लेकिन चंद्र सिंह गढ़वाली के नेतृत्व में गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट की पल्टून ने अहिंसक प्रदर्शन कर रहे लोगों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया। बाद में चंद्र सिंह गढ़वाली और उनके सैनिकों को कोर्ट मार्शल की कार्रवाई झेलनी पड़ी।
खान अब्दुल गफ्फार खान ने सदैव ‘मुस्लिम लीग’ के दो राष्ट्रों के सिद्धांत को नकारते हुए देश के विभाजन के मांग का विरोध किया। जब अंततः कांग्रेस द्वारा विभाजन को स्वीकार कर लिया तब वो बहुत निराश हुए और कहा कि, ‘आप लोगों ने हमें भेड़ियों के सामने फ़ेंक दिया।”
1947 में खान साहब और खुदाई खिदमतगार ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें मांग की गई कि पाकिस्तान के साथ मिलाए जाने की बजाय पश्तूनों के लिए अलग देश पश्तूनिस्तान बनाया जाए। लेकिन अंग्रेजों ने उनकी इस मांग को खारिज कर दिया।
आजादी के बाद जब भारत और पाकिस्तान अलग-अलग हुए तो खान अब्दुल गफ्फार खान पाकिस्तान चले गए। लेकिन पाकिस्तान सरकार के विरोध के कारण उनका ज्यादातर वक्त जेल या फिर निर्वासन में गुजारा। जब 20 जनवरी 1988 में उनका निधन हुआ उस समय भी वह पेशावर में नजरबंद थे। खान अब्दुल गफ्फार खान को सन 1987 में भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया।