मुंबई : बॉम्बे हाई कोर्ट ने अनिल देशमुख को जमानत देते हुए अपने आदेश में कहा कि उसका यह आदेश 10 दिनों के बाद लागू होगा,
बॉम्बे हाई कोर्ट ने ‘100 करोड़ की वसूली’ मामले में सीबीआई जांच का सामना कर रहे महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री और NCP नेता अनिल देशमुख को 1 लाख रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दे दी है. हालांकि, देशमुख को अपना पासपोर्ट कोर्ट में जमा कराना होगा. बॉम्बे हाई कोर्ट ने अनिल देशमुख को जमानत देते हुए अपने आदेश में कहा कि उसका यह आदेश 10 दिनों के बाद लागू होगा, यानी वह 10 दिन बाद ही जेल से बाहर नहीं आ पाएंगे. इन 10 दिनों में अगर सीबीआई चाहे तो बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती है. न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की एकल पीठ ने 8 दिसंबर को देशमुख की जमानत याचिका पर सुनवाई पूरी होने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया था.
अदालत ने आज अपना फैसला सुनाया. अनिल देशमुख एक साल से अधिक समय की न्यायिक हिरासत (13 महीने) के बाद जेल से रिहा होंगे. अनिल देशमुख 100 करोड़ की वसूली मामले में आरोपी हैं और एक ही केस से उत्पन्न दो जांचों में उलझे हुए हैं- एक केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा भ्रष्टाचार के अपराध के लिए और दूसरा प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध के लिए. मनी लॉन्ड्रिंग मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने 4 अक्टूबर को उन्हें जमानत दे दी थी. हालांकि, सीबीआई मामले में, विशेष अदालत ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था. स्पेशल कोर्ट के इस निर्णय को देशमुख ने बॉम्बे उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी.
तत्कालीन मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने अनिल देशमुख पर लगाए थे गंभीर आरोप
बीते साल मार्च में मुंबई पुलिस के तत्कालीन कमिश्नर परमबीर सिंह ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि आईपीएस अधिकारियों के तबादले के पीछे अनिल देशमुख हाथ है. परमबीर सिंह ने महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री देशमुख पर हर महीने 100 करोड़ वसूलने के लिए पुलिस अधिकारियों पर दबाव बनाने का आरोप भी लगाया था. इस मामले को लेकर विवाद बढ़ने पर अनिल देशमुख को महाराष्ट्र के गृह मंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था. उनके खिलाफ ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग और सीबीआई ने भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया था. बीते साल 2 नवंबर को देशमुख की गिरफ्तारी हुई थी और अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया था. तबसे वह जेल में ही बंद थे.
वरिष्ठ अधिवक्ता विक्रम चौधरी और अनिल देशमुख की ओर से पेश अधिवक्ता अनिकेत निकम ने तर्क दिया कि चूंकि दोनों मामले जुड़े हुए हैं और ईडी मामले में उनके मुवक्किल को जमानत दी गई थी, इसलिए सीबीआई मामले में भी उन्हें जमानत दी जानी चाहिए. विक्रम चौधरी ने तर्क दिया कि अनिल देशमुख ने कथित रूप से एक अपराध करने के लिए 1 वर्ष से अधिक समय जेल में व्यतीत किया है, जिसमें अधिकतम 7 साल तक के कारावास की सजा का प्रावधान है. वरिष्ठ अधिवक्ता ने अदालत को यह भी बताया कि मुंबई पुलिस के विवादास्पद पूर्व अधिकारी सचिन वाजे को सीबीआई के मामले में सरकारी गवाह बनाया गया है. दूसरी ओर, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने ईडी मामले में देशमुख को जमानत देते हुए वाजे के बयानों की सत्यता पर संदेह जताया था.
वहीं सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने अनिल देशमुख की जमानत याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि पूर्व गृह मंत्री उच्चतम स्तर के भ्रष्टाचार में शामिल थे, जिसने राज्य में शासन को प्रभावित किया. अधिवक्ता सिंह ने यह भी तर्क दिया कि मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दी गई जमानत विधेय अपराध (इस मामले में, भ्रष्टाचार मामले) में जमानत देने का आधार नहीं हो सकती है. उन्होंने अदालत को बताया कि अनिल देशमुख को सीबीआई की प्राथमिकी को रद्द करने और डिफॉल्ट जमानत की मांग करने वाली याचिकाओं में राहत देने से स्पेशल कोर्ट की ओर से इनकार कर दिया गया था. सीबीआई के वकील यह आशंका भी जताई कि एक प्रभावशाली व्यक्ति होने के नाते अनिल देशमुख जेल से बाहर आने पर अपने खिलाफ चल रही जांच में हस्तक्षेप कर सकते हैं.