मांस देवताओं को चढ़ाया जाता था खानपान एक बार फिर से राजनीतिक मुद्दा बन गया है।

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राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हिंदुओं के त्योहार नवरात्रि के मौके पर भारतीय जनता पार्टी के एक नेता ने मांस की सभी दुकानों को बंद करने की अपील की. हालांकि भारत या फिर हिंदुओं को शाकाहारी के तौर पर पेश करना, एक तरह से मांसाहार के साथ लंबे और प्राचीन संबंधों की उपेक्षा करना है.

पश्चिम दिल्ली लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के सांसद परवेश वर्मा ने अपने आह्वान में कहा, “अगर दूसरे समुदाय के लोग हिंदुओं के पर्व त्योहार का सम्मान करेंगे और इस फ़ैसले का स्वागत करेंगे तो हमलोग भी उनके पर्व त्योहार का सम्मान करेंगे.

परवेश वर्मा की मानें तो दो अप्रैल से शुरू हुए नवरात्र के दौरान नौ दिनों तक मांस की दुकानें बंद होनी चाहिए. नवरात्र के दौरान कई हिंदू उपवास रखते हैं और मांसाहार नहीं करते.परवेश वर्मा की मानें तो दो अप्रैल से शुरू हुए नवरात्र के दौरान नौ दिनों तक मांस की दुकानें बंद होनी चाहिए. नवरात्र के दौरान कई हिंदू उपवास रखते हैं और मांसाहार नहीं करते. हालांकि परवेश वर्मा के बयान के बाद आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार सहित विपक्ष ने इसकी आलोचना की है. लेकिन अपने खानपान के लिए मशहूर दिल्ली में पहली बार इस तरह का विवाद देखने को मिल रहा है. यहां यह जानना ज़रूरी है कि दिल्ली अपनी चिकन करी और कबाब के लिए बेहद मशहूर है.

इस मामले में परवेश वर्मा शायद भूल गए हों कि इन्हीं दिनों में रमज़ान का महीना चल रहा है और मुसलमानों के लिए इफ़्तार या शाम के भोजन में मांसहार एक प्रमुख हिस्सा होता है. साथ ही शायद वे यह भी मानते हैं कि मांस की ज़्यादातर दुकानें मुसलमानों की होती हैं और पूरे भारत या कहें दिल्ली के सारे हिंदू नवरात्र का उत्सव मनाते हैं.

इतिहास, आंकड़े और जीवनशैली से जुड़े अनुभव- परवेश वर्मा को ग़लत ठहराते हैं. खानपान के मामले में भारत की विविधता इतनी आसानी से हिंदू बनाम मुसलमान या फिर शाकाहारी बनाम मासांहारी में विभक्त नहीं हो सकती है, हालांकि दक्षिणपंथी राजनीति करने वाले इसे इस रूप में उछालते रहे हैं.

अंग्रेज़ी अख़बार द इकॉनामिक टाइम्स में भारतीय खानपान पर विस्तृत लेखन करने वाले संपादक विक्रम डॉक्टर कहते हैं, “यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि भारत में खानपान की परंपराएं कहीं ज़्यादा विविधता लिए हुए है, मिश्रित है. यहां प्राचीन समय से ही मांस खाने की परंपरा है और लंबे समय से शाकाहार भी चलन में हैं. लेकिन मुझे प्राय किसी एक तरफ़ का पक्ष लेने को कहा जाता है.”

वैदिक युग में मांस देवताओं को चढ़ाया जाता था

विक्रम डॉक्टर के मुताबिक, विडंबना यह है कि भारत का प्रगतिशील तबका मांसाहार का बचाव करता है जबकि पश्चिम का प्रगतिशील तबका पर्यावरण के लिए कहीं ज़्यादा अनुकूल और टिकाऊ खानपान की आदतों में मांसाहार को कम करने की मांग करता है.विक्रम डॉक्टर कहते हैं, भारत में दक्षिणपंथी राजनीति करने वाले शाकाहार को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं.

भारत में खानपान की परंपरा पर शोध करने वाले क्लिनिकल न्यूट्रीशियनिस्ट मानुशी भट्टाचार्या के मुताबिक, भारत में शिकार करके मांस खाने का चलन 70 हज़ार ईसा पूर्व से है. इतिहास के मुताबिक, प्राचीन भारत में सिंधु घाटी सभ्यता के समय से ही गोमांस और जंगली सूअर का व्यापक रूप से सेवन किया जाता था. वैदिक युग में पशुओं और गाय की बलि आम बात थी. 1500 और 500 ईसा पूर्व के बीच – मांस देवताओं को चढ़ाया जाता था और उसके बाद उसे दावतों में खाया जाता था.

डॉ. मानुशी भट्टाचार्य दावा करती हैं कि उन्होंने अपने अध्ययन में दक्षिण भारतीय ब्राह्मणों को कम से कम 16वीं शताब्दी तक मांसहार करता पाया जबकि उत्तर भारत के ब्राह्मणों और दूसरे सवर्णों ने 19वीं शताब्दी के आख़िरी वर्षों में मांसाहार का त्याग किया है.

उनका मानना है कि उपनिवेशवाद, जिसने भूमि उपयोग, कृषि व्यावस्था और व्यापार को बदला, के अलावा देश में पड़ने वाले भीषण अकालों ने आधुनिक भारतीय खानपान का स्वरूप बनाया है जिसमें – चावल, गेहूं और दाल की प्रधानता है.

लेकिन जैसा कि हर नियम के साथ अपवाद जुड़े होते हैं उसी तरह से भारतीय खानपान में भी एक अपवाद है – कुछ ब्राह्मण अभी भी मांस खाते हैं.

कश्मीरी पंडित अपने रोगन जोश के लिए प्रसिद्ध हैं जिसमें लाल मिर्च की एक भारी खुराक के साथ भेड़ के बच्चे या बकरी के मांस को ग्रेवी में पकाया जाता है. इसके अलावा बिहार, बंगाल में और दक्षिणी कोंकण तट पर ब्राह्मण परिवारों में विभिन्न प्रकार की ताज़ी मछलियाँ खाई जाती हैं.

मांसाहार जो है भारतीयों की पसंद दक्षिणी मुंबई के कोलाबा तट के सासून तट पर महिलाएं विभिन्न तरह की मछलियों का कारोबार करती हैं. यह मुंबई का सबसे पुराना तटीय बंदरगाह है. आज भारत में मांसाहार में सबसे कम लोकप्रिय बीफ़ ही है, लोग सबसे ज़्यादा मछलियों को पसंद करते हैं. बीते साल के नेशनल सैंपल सर्वे के मुताबिक, देश भर में मछली के बाद चिकन, मटन और अंत में बीफ़ का स्थान है.

भारतीय कितना मांसाहार करते हैं, इसका वास्तविक आंकड़ा जुटाना बेहद मुश्किल है. लेकिन प्यू सर्वे के मुताबिक 39 प्रतिशत भारतीयों ने ख़ुद को शाकाहारी बताया जबकि 81 फ़ीसद भारतीयों ने कहा कि वे मांस खाते हैं- हालांकि इसमें कई तरह के लोग शामिल हैं, जैसे कि वैसे लोग जो कुछ ख़ास मांस या सप्ताह में ख़ास दिन मांस नहीं खाते हैं.

2021 के सर्वे के मुताबिक, एक सप्ताह के अंदर मांसाहार केवल 25 प्रतिशत घरों में देखने को मिला था जबकि शहरी आबादी में यह 20 प्रतिशत ही था. लेकिन इससे यह नहीं कहा जा सकता है कि बाक़ी सब शाकाहारी हैं क्योंकि संभव है कि सर्वे से सात दिन के बीच में जिन घरों में मांस नहीं बना होगा, उन्होंने भी नहीं खाया होगा.

डॉ. मानुशी भट्टाचार्या कहती हैं, “हमलोग शाकाहारी हैं जो मांसाहार भी करते हैं.” विक्रम डॉक्टर भी भारत को लेकर कहते हैं, “भारत दुनिया की एकमात्र संस्कृतियों में से एक है, जहां शाकाहार को अभिजात वर्ग ने जल्दी अपना लिया जबकि दूसरे लोग मांस खाते रहे.” ज़ाहिर है कि भारतीय खानपान के व्यजंन विविधता भरे हैं, जिनमें मांस वाले व्यंजन भी शामिल हैं. हालांकि ज़रूरी नहीं है कि उन्हें मुख्य भोजन की तरह पेश किया जाए.विक्रम डॉक्टर गोवा में रहते हैं और वे गोवा के स्थानीय खानपान को भी सेमी शाकाहारी मानते हैं. वे कद्दू की कढ़ी में पके झींगे का उदाहरण देते हैं. उनके मुताबिक यह पोषक और स्वादिष्ट दोनों है.विक्रम डॉक्टर कहते हैं, “जब लोग गोवा आते हैं वे सब मांस खाना चाहते हैं. लेकिन गोवा के लोग ज़्यादा मांस नहीं खाते हैं. कैथोलिक परिवारों के भोजन में भी मांस और सूखी मछली के साथ कई तरह की दालें शामिल होती हैं.” उनका कहना है कि ऐसे कई उदाहरण हैं, तमिलनाडु में दलित परिवारों के बीच एक व्यंजन खूब पसंद किया जाता है जिसमें हरी बीन्स के साथ मांस पकाया जाता है.विक्रम डॉक्टर को आशंका है कि ज़रूरत के हिसाब से विकसिए हुए टिकाऊ खान पान के व्यंजन अब ग़ायब हो रहे हैं. उन्होंने कहा, “आपको रेस्तरां के मेनू पर सेमी-शाकाहारी भोजन नहीं मिलेगा.” उनकी आशंका सही है. भारत के समृद्ध शाकाहारी व्यंजनों की सूची में-मांस और समुद्री भोजन की स्वस्थ खुराकें भी शामिल हैं. विक्रम डॉक्टर का मानना है कि हमारे पास एक स्वस्थ और जलवायु के कहीं ज़्यादा अनुकूल खाने की परंपरा को तैयार करने का अवसर है. लेकिन भारतीयों की खानपान की प्रवृत्ति दूसरी तरफ़ इशारा करती है- मांस की खपत बढ़ रही है. ख़ासकर फैक्ट्री-फार्म चिकन की खपत बढ़ रही है. पिछले साल भारतीय फूड डिलिवरी प्लेटफॉर्म स्विगी पर सबसे ज़्यादा ऑर्डर की जाने वाली डिश चिकन बिरयानी थी. भारतीयों ने हर सेकेंड में दो प्लेट चिकन बिरयानी का ऑर्डर दिया था.

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