जीवन के असल मुद्दों, रोटी रोजी शिक्षा स्वास्थ्य पर मोदी सरकार से सवाल पूछते रहिये…

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मोदी सरकार को भी यह बात अच्छी तरह से पता है कि, बिना साम्प्रदायिक तनाव और दंगो के वे किसी भी राज्य में सरकार नहीं बना सकते हैं। अगर 1989-90-91 के दौरान देश मे रामजन्मभूमि आंदोलन का इतिहास खंगाले तो आप यह स्पष्ट तौर पर देखेंगे कि इन्ही साम्प्रदायिकता जन्य ध्रुवीकरण से इनकी सत्ता प्राप्ति की राह आसान हुयी है। आज हर जनसभा में भाजपा के शीर्ष नेता महंगाई, बेरोजगार, किसानो की आत्महत्या पर कुछ नहीं बोल रहे हैं, वे बोल रहे हैं साम्प्रदायिक मुद्दों पर, ऐसे मसलों पर जो सीधे उन्माद को बढ़ावा दे। कहीं कैराना के पलायन की 6 साल पुरानी ख़बरों का पुनर्पाठ हो रहा है तो, कहीं रामजन्मभूमि का मसला अदालत द्वारा निर्णीत कर दिए जाने के बाद, उसी स्तर के नए मुद्दे तलाशे जा रहे हैं। दंगा कराने और जानबूझकर ऐसी स्थिति उत्पन्न करने की कोशिश की जा रही है कि, आप खुद को जीवित रखने और बेहतर जीवन जीने के मुद्दे छोड़ कर, रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य की बात करना भूल जांय और उन मुद्दों में उलझ जांय जिनका कोई भी प्रभाव आप के जीवन और भविष्य पर फिलहाल नहीं पड़ने जा रहा है।
ऐसे समय मे जब इनकी यह चाल, आईने की तरह से साफ हो रही है कि, इनका इरादा क्या है और यह कैसे अपने लक्ष्य को पाने की जुगत में हैं, हम सबको सामाजिक सद्भाव की बात करते रहनी चाहिए और इनसे बार बार यह सवाल पूछते रहना चाहिए कि, आखिर देश मे, साढ़े सात साल से, और यूपी में पांच साल सरकार में रहने के बाद भी, वे अपनी उन उपलब्धियों को क्यों नहीं बता पा रहे हैं जो उन्होने अपने चुनाव घोषणापत्र, जिसे वे संकल्पपत्र कहते हैं, में की हैं ? अब शायद उन्हें अपने संकल्पपत्र की खुद ही कोई याद न हो। किसी भी बिगड़ैल दिमाग की सेलेब्रिटी के मुंह से, कुछ भी अप्रासंगिक बात कहलवा कर, बहस को अपने चहेते मीडिया के माध्यम से, उसी खोभार में केंद्रित कर देना, यह एक नया पैंतरा बन गया है।
देश का साम्प्रदायिक वातावरण, इनकी तमाम कोशिशों के बावजूद, फिलहाल बिगड़ा नहीं है और लोग भी, या तो ऐसी चीजों को बेहतर ढंग से समझने लगें हैं या वे अब इनके ट्रैप में न आने पाएं, इसलिए, सतर्क हो गए हैं, या वे अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी मे ही इतने दुश्वारियों में घिर गए हैं कि अब वे अपनी रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य पर ही खुद को केंद्रित कर बैठे हैं, जो भी कारण हो, पर साम्प्रदायिक सद्भाव, न बिखरने के कारण, भाजपा के मित्र और उनके हार्डकोर समर्थक अब खुद ही असहज होने लगे हैं। यही कारण है कि अब ऐसी खबरें अधिक आएंगी जो देखने पढ़ने में महत्वपूर्ण तो नहीं होंगी, पर वे साम्प्रदायिक रूप से आग लगाऊ होंगी। फिलहाल, ज़रूरी है कि शांति और संयम बनाये रखा जाय और सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ताओं से भी यही सवाल पूछे जाये कि रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य के मोर्चे पर सरकार ने किया क्या है। यकीन मानिए सत्तारूढ़ दल के आम कार्यकर्ता भी इन्हीं सब मूल समस्याओं से त्रस्त हैं जिनसे हम सब हैं। आखिर वे भी तो इसी समाज मे रहते हैं और यही गवर्नेंस भोग रहे हैं।

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