भारत की ज़्यादातर संपत्ति बेचकर भी पाई-पाई को मोहताज़ इतिहास की सबसे निकम्मी मोदी सरकार की नज़र अब बैंकों पर है।

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संसद के चालू सत्र में दो बैंकों (शायद सेंट्रल बैंक और इंडियन ओवरसीज बैंक) को बेचने के लिए बैंकिंग कानून संशोधन बिल 2021 लाया जाएगा।
मोदी सरकार का जुमला है कि उसे देश के विकास के लिए 1.75 लाख करोड़ की ज़रूरत है। इसीलिए विनिवेश ज़रूरी है।
देश का विकास हो रहा है या अडाणी का-ये दुनिया को पता है।
सच यह है कि मोदी सरकार भारत के चंद कॉरपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाना चाहती है।
यह बात बैंक के कर्मचारियों का एसोसिएशन (AIBEA) खुद कह रहा है। कर्मचारी सड़कों पर उतर आए हैं।
मोदी सरकार का सीधा गणित है। पहले लोन सेटलमेंट के रूप में डिफाल्टर कंपनियों का कर्ज माफ करवाओ और फिर अपने दोस्त कॉर्पोरेट के हाथों उन्हीं कर्जदार कंपनियों को बिकवा दो।
नीचे (लिंक) ऐसी ही 13 कर्जदार कंपनियों की लिस्ट है, जिनकी कर्जमाफी से बैंकों को करीब 3 लाख करोड़ रूपये का चूना लगवाया गया। अब इन कंपनियों को मोदी के दोस्त आराम से खरीदेंगे।
यह भी देखिए कि कुल कितना क़र्ज़ बकाया था और कितने में सेटल हुआ।
इसमें नफा-नुकसान किसका हुआ?
नफा बीजेपी का हुआ-जो राजनीतिक चंदे के रूप में या दलाली की शक्ल में आएगा।
नुकसान हमारा हुआ, क्योंकि बैंकों में हमारा ही पैसा है, जो बैंक क़र्ज़ पर चलाती है। 3 लाख करोड़ मोदी की जेब से नहीं गया।
दुनिया में अंधभक्तो के सिवा ऐसी एक भी कौम नहीं, जो अपना ही बैंक बैलेंस लूटने वाले को भगवान मानती हो।
फिर भी अगर समझ नहीं आ रहा हो तो बैंकों के डूबने का इंतज़ार कीजिए।

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