मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जीवन परिचय | Maulana Abul Kalam Azad Biography

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मौलाना अबुल कलाम आजाद का असली नाम अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन है. लेकिन इन्हें मौलाना आजाद नाम से ही जाना जाता है. स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई के समय मौलाना आजाद मुख्य सेनानी में से एक थे. मौलाना आजाद ये एक महान वैज्ञानिक, एक राजनेता और कवी थे. आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए इन्होने अपने पेशेवर काम को भी छोड़ दिया, और देशभक्ति के चलते देश की आजादी के लिए बाकि लोगों के साथ काम करने लगे. मौलाना आजाद, गाँधी जी के अनुयायी थे, उन्होंने गाँधी जी के साथ अहिंसा का साथ देते हुए,  सविनय अवज्ञा और असहयोग आंदोलन में बढ़चढ़ के हिस्सा लिया था. बाकि मुसलमान लीडर जैसे मोहम्मद अली जिन्ना आदि  से अलग, मौलाना आजाद भारत देश की स्वतंत्रता को सांप्रदायिक स्वतंत्रता से बढ़ कर मानते थे. उन्होंने धार्मिक सद्भाव के लिए काम किया है और देश विभाजन के कट्टर प्रतिद्वंद्वी भी थे. मौलाना आजाद ने लम्बे समय तक भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी, साथ ही भारत पाकिस्तान विभाजन के गवाह बने. लेकिन एक सच्चे भारतीय होने के कारण उन्होंने स्वतंत्रता के बाद भारत में रहकर इसके विकास में कार्य किया और पहले शिक्षा मंत्री बन, देश की शिक्षा पद्धति सुधारने का ज़िम्मा उठाया.

मौलाना आजाद स्वतंत्रता की लड़ाई (Maulana Azad Freedom Fighter) –

  • एक मौलवी के रूप में शिक्षा लेने के बाद भी आजाद जी ने अपने इस काम को नहीं चुना और हिन्दू क्रांतिकारीयों के साथ, स्वतंत्रता की लड़ाई में हिस्सा लिया.
  • 1912 में मौलाना आजाद ने उर्दू भाषा में एक साप्ताहिक समाचार पत्र ‘अल-हिलाल’ की शुरुवात की. जिसमें ब्रिटिश सरकार के विरुध्य में खुलेआम लिखा जाता था, साथ ही भारतीय राष्ट्रवाद के बारे में भी इसमें लेख छापे जाते थे. यह अखबार क्रांतिकारीयों के मन की बात सामने लाने का जरिया बन गया, इसके द्वारा चरमपंथियों विचारों का प्रचार प्रसार हो रहा था.
  • इस अख़बार में हिन्दू मुस्लिम एकता पर बात कही जाती थी, युवाओं से अनुरोध किया जाता था कि वे हिन्दू मुस्लिम की लड़ाई को भुलाकर, देश की स्वतंत्रता के लिए काम करें.
  • 1914 में अल-हिलाल को किसी एक्ट के चलते बेन कर दिया गया, जिससे यह अख़बार बंद हो गया. इसके बाद मौलाना आजाद ने ‘अल-बलाघ’ नाम की पत्रिका निकाली, जो अल-हिलाल की तरह ही कार्य किया करती थी.
  • लगातार अख़बार में राष्ट्रीयता की बातें छपने से देश में आक्रोश पैदा होने लगा था, जिससे ब्रिटिश सरकार को खतरा समझ आने लगा और उन्होंने भारत की रक्षा के लिए विनियम अधिनियम के तहत अखबार पर प्रतिबंध लगा दिया. इसके बाद मौलाना आजाद को गिरिफ्तार कर, रांची की जेल में डाल दिया गया. जहाँ उन्हें 1 जनवरी 1920 तक रखा गया.
  • जब वे जेल से बाहर आये, उस समय देश की राजनीती में आक्रोश और विद्रोह का परिदृश्य था. ये वह समय था, जब भारतीय नागरिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकारों के आवाज बुलंद करने लगे थे.
  • मौलाना आजाद ने खिलाफत आन्दोलन शुरू किया, जिसके द्वारा मुस्लिम समुदाय को जागृत करने का प्रयास किया गया.
  • आजाद जी ने अब गाँधी जी के साथ हाथ मिलाकर, उनका सहयोग ‘असहयोग आन्दोलन’ में किया. जिसमें ब्रिटिश सरकार की हर चीज जैसे सरकारी स्कूल, सरकारी दफ्तर, कपड़े एवं अन्य समान का पूर्णतः बहिष्कार किया गया.
  • आल इंडिया खिलाफत कमिटी का अध्यक्ष मौलाना आजाद को चुना गया. बाकि खिलाफत लीडर के साथ मिलकर इन्होने दिल्ली में ‘जामिया मिलिया इस्लामिया संस्था’ की स्थापना की.
  • गाँधी जी एवं पैगंबर मुहम्मद से प्रेरित होने के कारण, एक बड़ा बदलाव इनको अपने निजी जीवन में भी करना पड़ा. गाँधी जी के नश्के कदम में चलते हुए, इन्होने अहिंसा को पूरी तरह से अपने जीवन में उतार लिया. महात्मा गाँधी जीवन परिचय, भाषण, निबंध एवं कविता यहाँ पढ़ें.
  • 1923 में आजाद जी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया, इतनी कम उम्र में पहली बार किसी नेता को ये पद मिला था. इसके बाद इन्होने दिल्ली में एकता सम्मेलन में किया, साथ ही खिलाफत एवं स्वराजी के बीच मतभेद कम करने की कोशिश की.
  • आजाद जी भारतीय कांग्रेस के एक मुख्य राजनेता थे, जो कांग्रेस वर्किंग कमिटी के सदस्य भी थे. इस दौरान इन्होने भारत देश के अनेकों जगह में जाकर, गांधीवादी और देश की आजादी की बात कही.
  • 1928 में मौलाना आजाद किसी बात पर मुस्लिम लीग लीडर के खिलाफ खड़े हो गए, और उन्होंने उस बात पर मोतीलाल नेहरु का साथ दिया. उन्होंने मुहम्मद अली जिन्ना द्वारा सांप्रदायिक बात का विरोध किया और एक धर्मनिरपेक्ष देश की बात की.
  • 1930 में गाँधी जी के साथ किये नमक तोड़ो आन्दोलन में, आजाद जी को बाकि नेताओं के साथ गिरफ्तार किया गया. 1934 में इन्हें जेल से रिहाई मिली.
  • इसके बाद इन्होने भारत सरकार अधिनियम के तहत चुनाव के आयोजन में मदद की. केंद्रीय विधायिका में संयुक्त राष्ट्र के निर्वाचित सदस्यों की बड़ी संख्या के कारण, वे 1937 के चुनावों में नहीं थे.
  • इसी दौरान इन्होने मुहम्मद अली जिन्ना और उनके सहभागियों की कड़ी निंदा की, जो कांग्रेस राज को हिन्दू राज्य कहा करते थे. उन्होंने दृढ़ता से आवाज उठाई और कांग्रेस मंत्रालयों से उनके इस्तीफे की मांग की.
  • 1940 में आजाद जी को रामगढ़ सेशन से कांग्रेस का प्रेसिडेंट बनाया गया. वहां उन्होंने धार्मिक अलगाववाद की आलोचना और निंदा की, और साथ ही भारत की एकता के संरक्षण की बात कही. वे वहां 1946 तक रहे.
  • भारत की आजादी के बाद मौलाना जी ने भारत के नए संविधान सभा के लिए, कांग्रेस की तरफ से चुनाव लड़ा. भारत के महान स्वतंत्रता संग्रामी के बारे में यहाँ पढ़ें.
  • भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय, इन्होने भारत देश में मुस्लिम समुदाय की रक्षा की ज़िम्मेदारी ली. विभाजन के समय वे बंगाल, बिहार, पंजाब एवं असम गए, जहाँ उन्होंने लोगों के लिए रिफ्यूजी कैंप बनवाए, उन्हें खाना एवं सुरक्षा प्रदान की.
  • जवाहर लाल नेहरु की सरकार में मौलाना जी को पहले कैबिनेट मंत्रिमंडल में 1947 से 1958 तक शिक्षा मंत्री बनाया गया. मंत्री बनने के बाद आजाद जी ने 14 वर्ष से कम उम्र के सभी लोगों के लिए शिक्षा अनिवार्य कर दी. साथ ही वयस्क निरक्षरता, माध्यमिक शिक्षा और गरीब एवं महिलाओं की शिक्षा पर बल दिया, जिससे देश की उन्नति जल्द से जल्द हो सके. 
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