बीते आठ साल में भारत में तेजी से बढ़े गरीब, 2020 में 7 करोड़ 60 लाख का इजाफा-

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रिपोर्ट में दावा
भारत में पिछले आठ सालों में गरीबों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2020 तक 7 करोड़ 60 लाख लोग और इस लिस्ट में जुड़ चुके हैं। पिछले कुछ महीनों से देश में बेरोजगारी के आंकड़े भी लगातार बढ़ रहे हैं।
जर्मनी के बोन में स्थित आईजेडए इंस्टीट्यूट ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स (IZA Institute of Labour Economics) के फेलो रिसर्च संतोष मेहरोत्रा, और उनके साथी जजती केशरी परिदा की रिपोर्ट में ये बातें सामने आईं हैं। रिपोर्ट के अनुसार पिछले आठ वर्षों में गरीबी से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या में 76 मिलियन की वृद्धि हुई है। देश में गरीबों की संख्या में इतनी तेज वृद्धि पहली बार देखी जा रही है।
इस रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाली बात है। इसमें में जो डाटा लिया गया है वो कोरोना महामारी के शुरूआती दौर तक का है। यानि कोरोना से पहले ही इस संख्या में वृद्धि हो चुकी थी। प्रोफेसर संतोष ने कहा कि हम प्रति व्यक्ति खपत व्यय के सरकार के अपने माप के आधार पर गरीबी के आंकड़े प्रस्तुत करते हैं। भारत ने 2011-12 से उपभोग व्यय सर्वेक्षण (सीईएस) डेटा जारी नहीं किया है, हालांकि राष्ट्रीय सर्वेक्षण संगठन (एनएसओ) हर पांच साल में ये सर्वेक्षण करता है। 2017-18 के सीईएस डेटा को भारत सरकार द्वारा सार्वजनिक नहीं किया गया था।
भारत के पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS), जिसमें 1973-74 से 2011-12 (एनएसओ के डाटा में भी) तक के पंचवर्षीय रोजगार-बेरोजगारी का डाटा शामिल है- ने भी घरों का उपभोग व्यय एकत्र किया है। पीएलएफएस इसी आधार पर सर्वे करते रहा था। लेकिन अब इसे एनएसओ द्वारा सालाना किया जाता है। जबकि खपत व्यय पर पीएलएफएस के प्रश्न सीईएस के जितने विस्तृत नहीं हैं, वे पूरे समय के आधार पर खपत में बदलाव का अनुमान लगाने के लिए पर्याप्त हैं।
उन्होंने कहा- “दिक्कत ये है कि इतनी आमदनी कम हो गई है, मैं कोविड के पहले की बात कर रहा हूं। हमारे देश में मेरे हिसाब से अगर हम सरकारी गरीबी रेखा के पैमाने को मानकर चलते हैं, तो उसके हिसाब से 2012 में जितने गरीब थे, उससे साढ़े सात करोड़ गरीबों की संख्या बढ़ गई है। मतलब हर साल लगभग एक करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे आ रहे थे, पिछले आठ सालों में”।

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