अफगानिस्तान के कीमती खनिज अब तालिबान के नियंत्रण में आ गए हैं। अमेरिकी मीडिया के अनुमान के मुताबिक अफगानिस्तान में लगभग एक ट्रिलियन डॉलर के ऐसे कीमती खनिज हैं, जिनकी आज की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका है। अफगानिस्तान के कई प्रांतों में लौह, तांबा, सोना, और लीथियम के खनिज भंडार हैं। इनमें आधुनिक काल में लिथियम सबसे अहम है, जिसका इस्तेमाल रिचार्जेबल बैटरी बनाने में होता है। आधुनिक तकनीक के संचालन के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के मकसद से भी रिचार्जेबल बैटरी को महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
वैज्ञानिक और अमेरिका में इकोलॉजिकल फ्यूचर्स ग्रुप नाम के थिंक टैंक के संस्थापक रॉड शूनोवर ने टीवी चैनल सीएनएन से कहा- ‘अफगानिस्तान बेशक दुनिया के उन क्षेत्रों में है, जो परंपरागत कीमती धातुओं के खनिज के लिहाज से समृद्ध हैं। लेकिन 21वीं सदी में उभर रही अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी खनिज के लिहाज से भी वह समृद्ध है।
सुरक्षा संबंधी चुनौतियों और बुनियादी ढांचे की कमी की वजह से अफगानिस्तान में मौजूद खनिज पदार्थों की खुदाई नहीं हो सकी है। विश्लेषकों का कहना है कि इन खनिज पदार्थों की वजह से ही पश्चिमी देशों के साथ-साथ चीन और पाकिस्तान की भी निगाह में अफगानिस्तान महत्वपूर्ण है। पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि खनिज समृद्ध होने के बावजूद अफगानिस्तान दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है। 2020 में वहां की लगभग 90 फीसदी आबादी औसतन रोजाना दो डॉलर से कम खर्च पर जिंदगी गुजारने को मजबूर थी। यानी इतनी बड़ी आबादी विश्व बैंक की गरीबी की परिभाषा के तहत चरम गरीबी के दायरे में आती थी
जानकारों ने ध्यान दिलाया है कि दुनियाभर की विकसित अर्थव्यवस्थाओं में लिथियम, कोबाल्ट, और रेयर अर्थ जैसे खनिजों की मांग तेजी से बढ़ रही है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने बीते मई में कहा था कि लिथियम, तांबा, निकेल, कोबाल्ट, और रेयर अर्थ की सप्लाई दुनिया में बढ़ाने की जरूरत है, वरना दुनिया जलवायु परिवर्तन रोकने के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाएगी। चीन, अफ्रीकी देश कोंगो, और ऑस्ट्रेलिया के पास लिथियम, कोबाल्ट, और रेयर अर्थ के सबसे बड़े भंडार हैं। अब दुनिया में ज्ञात कुल भंडार का 75 फीसदी हिस्सा इन तीन देशों के पास है। जहां तक अकेले लिथियम की बात है, तो उसका सबसे बड़ा भंडार लैटिन अमेरिकी देश बोलिविया में है।
अमेरिका सरकार का अनुमान है कि अफगानिस्तान में लिथियम का जितना भंडार है, मुमकिन है कि वह बोलिविया के बराबर हो। अमेरिका के भूगर्भीय सर्वे विभाग के एक अधिकारी ने 2010 में कहा था कि अगर अफगानिस्तान में कुछ वर्षों तक शांति रहे, तो खनिज भंडारों का दोहन संभव हो सकता है। लेकिन ऐसी शांति वहां कभी कायम नहीं हो सकी। इसके बावजूद सोना, तांबा और आयरन की कुछ खुदाई अफगानिस्तान में होती है। लिथियम और रेयर अर्थ के भंडारों की तलाश का कुछ काम भी आगे बढ़ा है।
अमेरिकी जानकारों को अंदेशा है कि अब अफगानिस्तान में जो हालात बने हैं, उसका फायदा चीन को मिल सकता है। तालिबान और चीन के बीच संपर्क बना हुआ है। तालिबान ने चीनी निवेश में दिलचस्पी भी दिखाई है। ऐसे में संभव है कि चीनी कंपनियों को वह खदानों को विकसित करने का काम सौंप दे। इस संभावना ने अमेरिका की चिंता और बढ़ा दी है।
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