Delhi : नई दिल्ली | महाराष्ट्र बंधु न्यूज़ एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
आईआरएस अधिकारी समीर वानखेडे के मामले में केंद्र सरकार को दिल्ली हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है।
अदालत ने केंद्र की पुनर्विचार याचिका को “तथ्य छिपाने की साजिश” बताते हुए सख्त टिप्पणी की और सरकार पर ₹20,000 का जुर्माना ठोक दिया।
यह मामला उस समय चर्चा में आया जब केंद्र ने अदालत से अपने 28 अगस्त के आदेश की समीक्षा करने की मांग की थी —
लेकिन जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस मधु जैन की बेंच ने कहा कि सरकार ने महत्वपूर्ण जानकारी कोर्ट से छिपाई, और इस प्रकार न्यायिक प्रक्रिया के साथ छल किया।
अदालत ने क्या कहा?
अदालत ने अपने आदेश में कहा —
> “हम यह देखकर स्तब्ध हैं कि केंद्र सरकार ने वह तथ्य छिपाया, जिसमें वानखेडे के खिलाफ विभागीय जांच पर रोक लगाने का आदेश पहले ही दिया जा चुका था। न्यायालय से सत्य छिपाना गंभीर अपराध है। हम इस आचरण की कड़ी निंदा करते हैं।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि जब 29 जुलाई को केस पर फैसला सुरक्षित रखा गया था, तब भी केंद्र ने नई कार्यवाही की सूचना नहीं दी —
यह अदालत की नजर में एक प्रकार की जानबूझकर की गई भ्रामक चाल थी।
क्या है पूरा मामला?
समीर वानखेडे की पदोन्नति को लेकर केंद्र और अदालत के बीच यह खींचतान 2021 से चली आ रही है।
केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) ने पहले ही आदेश दिया था कि अगर UPSC द्वारा वानखेडे का नाम सिफारिश किया गया है, तो उन्हें जनवरी 2021 से पदोन्नति दी जाए।
लेकिन केंद्र ने इसे लागू करने में देरी की।
बाद में जब वानखेडे ने अदालत में अवमानना याचिका दायर की, तभी केंद्र हरकत में आया और CAT के फैसले को चुनौती दी।
केंद्र का कहना था कि 18 अगस्त को वानखेडे के खिलाफ आरोपपत्र जारी हुआ था, जबकि अदालत ने माना कि यह जानकारी जानबूझकर छिपाई गई।
इसलिए कोर्ट ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा —
> “यह न्याय प्रक्रिया का अपमान है। ऐसी हरकत बर्दाश्त नहीं की जाएगी।”
जुर्माना और फटकार
दिल्ली हाईकोर्ट ने न केवल याचिका को खारिज किया, बल्कि केंद्र पर ₹20,000 का जुर्माना भी लगाया, जिसे दिल्ली हाईकोर्ट अधिवक्ता कल्याण कोष में जमा करने का आदेश दिया गया।
कोर्ट ने चेतावनी दी —
> “हम उम्मीद करते हैं कि भविष्य में केंद्र सरकार इस तरह की गलतबयानी नहीं करेगी और अदालत के समक्ष पूर्ण सत्य प्रस्तुत करेगी।”
विशेषज्ञों की राय
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला सरकार के लिए एक कड़ा संदेश है —
कि अदालत में “आधा सच” पेश करना न्याय के साथ खिलवाड़ है।
यह आदेश नौकरशाही तंत्र में भी एक बड़ी मिसाल बनेगा, खासकर उन मामलों में जहां अधिकारियों के खिलाफ जांच या कार्रवाई राजनीतिक रंग ले लेती है।
यह फैसला सिर्फ समीर वानखेडे का नहीं — यह एक सिस्टम की परीक्षा है, जिसमें अदालत ने साफ कहा: “सत्य छिपाओगे तो सज़ा पाओगे!”
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