Mumbai : मुंबई, 28 अप्रैल — सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में अवैध इमारतों के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए उनके ध्वस्तीकरण का आदेश दिया है। अदालत ने मालवन नगर परिषद क्षेत्र से जुड़ी अवैध इमारतों पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया, जबकि बॉम्बे हाईकोर्ट नागपुर, मुंबई और नवी मुंबई में इसी तरह के मामलों की सुनवाई कर रहा है।
यह तथ्य कि महाराष्ट्र में अवैध निर्माण को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की आवश्यकता पड़ी, खुद इस बात को दर्शाता है कि किस तरह भ्रष्टाचार, मिलीभगत और उदासीनता ने शहरी विकास व्यवस्था को खोखला कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के लगभग चार महीने बाद महाराष्ट्र सरकार ने इस सप्ताह एक आदेश जारी कर सभी जिला कलेक्टरों को निर्देश दिया कि वे अदालत द्वारा तय की गई प्रक्रिया के अनुसार अवैध निर्माणों को गिराएं और भविष्य में ऐसे निर्माणों को रोकने के लिए कदम उठाएं। सरकार ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि अधिकारी आदेशों का पालन नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
लेकिन उठते हैं कई सवाल
हालांकि सरकार ने आदेश जारी कर दिया है, लेकिन कई असहज सवाल भी सामने आते हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद आदेश जारी करने में लगभग चार महीने का समय क्यों लग गया? इस देरी ने कई अवैध इमारतों को वैध बनाने का मौका दे दिया होगा। क्या यह देरी जानबूझकर की गई थी?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि हजारों अवैध इमारतें बनीं कैसे, जबकि सड़कों पर गलत जगह खड़ी बाइक तक तुरंत उठा ली जाती है? किसी भी निर्माण कार्य को शुरू करने के लिए कई तरह की अनुमति और अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) चाहिए होते हैं। बिना अधिकारियों की मिलीभगत के महीनों तक चलने वाला यह अवैध निर्माण संभव ही नहीं था। क्या इस दौरान संबंधित अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों से आंखें मूंदे बैठे थे?
जिम्मेदारी तय करना जरूरी
अवैध निर्माणों की यह कहानी सतह पर दिखने से कहीं अधिक गहरी है। इसमें केवल तोड़फोड़ से समस्या का समाधान नहीं होगा। बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी पिछले महीने महाराष्ट्र सरकार को सुझाव दिया था कि अवैध निर्माणों में शामिल सभी पक्षों — बिल्डर से लेकर अधिकारी तक — की जिम्मेदारी तय करने के लिए कड़े कानून बनाए जाएं और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
इसके लिए एक मजबूत और छेड़छाड़-रोधी प्रणाली की आवश्यकता है, जिसमें सभी अनुमतियों और स्वीकृतियों को डिजिटल किया जाए और मानवीय हस्तक्षेप को न्यूनतम कर दिया जाए। एक स्वतंत्र निगरानी एजेंसी (ओम्बड्समैन) की निगरानी में यह पूरी प्रक्रिया संचालित होनी चाहिए।
हालांकि, यह संभावना कम है कि महाराष्ट्र सरकार इतने कठोर कदम उठाएगी, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से ऐसी व्यवस्था लागू करने के लिए निर्देश नहीं दिया है, और सरकार भी अपने अधिकारियों को नाराज़ नहीं करना चाहेगी।
भ्रष्टाचार की गहराई का अंदाजा
भ्रष्टाचार और अवैध लाभ के जाल की गहराई का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लगभग 10 साल पहले बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) ने मुंबई में लगभग 56,000 अवैध इमारतों की पहचान की थी। हाल ही में नवी मुंबई नगर निगम को भी बॉम्बे हाईकोर्ट ने फटकार लगाई थी, जबकि सिडको (CIDCO) ने बीते कुछ हफ्तों में 56 एकड़ भूमि पर बनी 2,200 अवैध संरचनाओं को ध्वस्त किया है।
जब तक दोषियों की जवाबदेही तय नहीं की जाती, तब तक यह प्रयास महज गर्मियों में मक्खियां मारने जैसा होगा।
(यह विशेष रिपोर्ट Bandhu News द्वारा प्रस्तुत की गई है।)
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश: महाराष्ट्र में अवैध इमारतें गिराने के निर्देश | विशेष रिपोर्ट Bandhu News
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