मुंबई : डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर नगर, गणेश मूर्ति नगर के उज्ज्वल भविष्य झुग्गी में रहने वाले बच्चों की प्रगति गरीब परिवारों के चेहरों पर खुशी लाने के उद्देश्य से आज पद्मश्री डॉ.कल्पना सरोज माँ ने विकास के विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा कि.
2007 से डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर नगर गणेश मूर्ति नगर रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट लटका पड़ा हुआ है, कई सारे डेवलपर्स बिल्डर आके बडे वादे कर के चले गये, पर अब जल्द ही पुनर्विकास परियोजना रीडिवेलपमेंट का काम शुरू किया जाऐगा, और पद्मश्री डॉ.कल्पना सरोज माँ कहा,
कौन हैं कल्पना सरोज Original Slumdog Millionaire
https://en.wikipedia.org/wiki/Kalpana_Saroj
महज 12 साल की उम्र में कल्पना सरोज (Kalpana Saroj) की शादी हो गई थी. ससुराल में उनके साथ मार-पीट की गई. पिता को जब इस बात का पता चला तो वह कल्पना को फिर से अपने घर ले आए. जब वह 16 साल की हुईं, तो मुंबई आ गईं और एक फैक्ट्री में काम करना शुरू किया, जहां उन्हें सिर्फ 2 रुपये मिलते थे. आज वह 2000 हजार करोड़ का कारोबार संभाल रही हैं.
कल्पना सरोज का जन्म महाराष्ट्र के अकोला जिले के छोटे से गाव रोपरखेड़ा में हुआ था. वह जिस परिवार में जन्मी वह काफी गरीब था. घर का खर्चा भी बहुत मुश्किल से चलता था. कल्पना सरकारी स्कूल में पढ़ती थीं और वह हमेशा पढ़ाई में आगे थीं. लेकिन, वह एक दलित थीं जिसके कारण स्कूल में उन्हें कई समस्याएं झेलनी पड़ी. महज 12 साल की उम्र में ही उनकी शादी 10 साल बड़े आदमी से कर दी गई थी
जब अपने ससुराल में गईं तो उन्हें वहां कई यातनाएं झेलनी पड़ी. वह लोग उन्हें खाना नहीं देते थे. बाल पकड़ कर मारते थे. ऐसा बर्ताव करते थे कि कोई जानवर के साथ भी ऐसा न करे. इन सभी से कल्पना की हालत बहुत खराब हो चुकी थीं. लेकिन फिर एक बार कल्पना के पिता उनसे मिलने आए तो बेटी की यह दशा देख उन्होंने समय नहीं बर्बाद किया और गांव वापस ले आए.
16 साल की उम्र में वे मुंबई अपने चाचा के पास चली गईं. कल्पना सिलाई का काम जानती थीं तो उनके चाचा ने उन्हें एक कपड़ा मिल में नौकरी दिलवा दी. यहां उन्हें रोजाना के 2 रुपये मिलते थे. फिर यहां से कल्पना को अपनी जिंदगी की राह मिल गई. यहां कल्पना ने देखा कि सिलाई और बुटीक के काम में बहुत स्कोप है, जिसे एक बिजनेस के तौर पर समझने का उन्होंने प्रयास किया था. उन्होंने अनुसूचित जाति को मिलने वाले लोन से एक सिलाई मशीन के अलावा कुछ अन्य सामान खरीदा और एक बुटीक शॉप को ओपन किया. फिर इसके बाद उन्हें कभी मुड़ कर नहीं देखा.
कल्पना जब 22 साल की हुईं तो उन्होंने फर्नीचर का बिजनेस शुरू किया. इसके बाद कल्पना ने स्टील फर्नीचर के एक व्यापारी से विवाह कर लिया, लेकिन वर्ष 1989 में एक पुत्री और पुत्र की जिम्मेदारी उन पर छोड़ कर वह इस दुनिया को अलविदा कह गये.
कल्पना के संघर्ष और मेहनत को जानने वाले उसके मुरीद हो गए और मुंबई में उन्हें पहचान मिलने लगी. इसी जान-पहचान के बल पर कल्पना को पता चला कि 17 साल से बंद पड़ी कमानी ‘ट्यूब्स’ (‘Kamani Tubes’) को सुप्रीम कोर्ट ने उसके कामगारों से शुरू करने को कहा है. कंपनी के कामगार कल्पना से मिले और कंपनी को फिर से शुरू करने में मदद की अपील की. ये कंपनी कई विवादों के चलते 1988 से बंद पड़ी थी. कल्पना ने वर्करों के साथ मिलकर मेहनत और हौसले के बल पर 17 सालों से बंद पड़ी कंपनी में जान फूंक दी. ये कल्पना सरोज का ही कमाल है कि आज कमानी ट्यूब्स 500 करोड़ से भी ज्यादा की कंपनी बन गयी है.
उनकी इस महान उपलब्धि के लिए उन्हें 2013 में ‘पद्म श्री’ सम्मान से भी नवाज़ा गया और कोई बैंकिंग बैकग्राउंड ना होते हुए भी सरकार ने उन्हें भारतीय महिला बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में शामिल किया. इसके अलावा कल्पना सरोज कमानी स्टील्स, केएस क्रिएशंस, कल्पना बिल्डर एंड डेवलपर्स, कल्पना एसोसिएट्स जैसी दर्जनों कंपनियों की मालकिन हैं . इन कंपनियों का रोज का टर्नओवर करोड़ों का है. समाजसेवा और उद्यमिता के लिए कल्पना को पद्मश्री और राजीव गांधी रत्न के अलावा देश-विदेश में दर्जनों पुरस्कार मिल चुके हैं.
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