1 जनवरी,शौर्य दिवस

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1 जनवरी, शौर्य दिवस की आप सबको बधाई।1818 को इसी दिन केवल 500 महार सैनिकों ने 29000 पेशवाई फ़ौज को हराकर भारत को जातिमुक्त और लोकतांत्रिक बनाने की दिशा में पहला ऐतिहासिक क़दम बढ़ाया।

दूसरे शब्दों में कहें तो एक ओर ब्राह्मण राज बचाने की फिराक में पेशवा थे पेशवा बाजीराव-II के 28000 सैनिक थे। मात्र 500 महार सैनिकों ने पेशवा ब्राह्मण की शक्तिशाली फौज को हरा दिया। सैनिको को उनकी वीरता और साहस के लिए सम्मानित किया गया। ये पेशवा वही थे जिनके राज्ये में भारतवासी/मूलनिवासी अछूत बना दिए गए थे और इनकी गले में हांड़ी और कमर में झाड़ू बाँध के चलने का सख्त आदेश था, इनकी परछाई तक अछूत मानी जाती थी इसलिए इनको सिर्फ दोपहर को ही निकलने की आज़ादी थी जब परछाई छोटी होती है|

भीमा कोरेगांव’ जहां लिखा गया BAHUJAN शौर्य का गौरवशाली इतिहास

“वो सिर्फ 500 थे, लेकिन दिल में जज़्बा था कि जातिवाद को हराना है.. वे जान पर खेल गए, कई तो कट मरे, पर आख़िरकार… भीमा कोरेगांव के मैदान से पेशवा ब्राह्मण की फ़ौज भाग गई। 1818 को इसी दिन महार सैनिकों ने पेशवाई को हराकर भारत को जातिमुक्त और लोकतांत्रिक बनाने की दिशा में पहला ऐतिहासिक क़दम बढ़ाया”

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल की यह लाइन दलितों के शौर्य की उस कहानी को कहती है जो आज से लगभग दो सौ साल पहले घटित हुई थी। वह साल 1818 था जब आज के ही दिन यानि 1 जनवरी 1818 को पूरी दुनिया भर में दलित समाज के शौर्य की गाथा लिखी गई थी।

यह घटना जहां दलितों की शौर्यगाथा है तो वहीं मनुवादियों के मुंह पर कालिख। इस महान गाथा में 500 नायकों ने हिस्सा लिया था। ये लोग बहुजन समाज के नायक हैं। इस ऐतिहासिक दिन को याद करते हुए डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर हरसाल 1 जनवरी को उस महान स्थान पर जाकर उन वीर दलितों का नमन किया करते थे।

1 जनवरी 1818 को कोरेगांव के युद्ध में महार सैनिकों ने ब्राह्मणवादी पेशवाओं को धूल चटा दी थी। बाबासाहेब ने अपनी किताब राइटिंग्स एंड स्पीचेस (अंग्रेज़ी) के खंड 12 में ‘द अनटचेबल्स एंड द पेक्स ब्रिटेनिका’ में इस तथ्य का वर्णन किया है। यह कोरेगांव की लड़ाई थी, जिसके माध्यम से अंग्रेजों ने मराठा साम्राज्य को ध्वस्त कर भारत में ब्रिटिश राज स्थापित किया। यहां 500 महार सैनिकों ने पेशवा राव के 28 हजार सैनिकों की फौज को हराकर देश से पेशवाई का अंत किया।

कोरेगांव भीमा नदी के तट पर महाराष्ट्र के पुणे के पास स्थित है। 01 जनवरी 1818 को सर्द मौसम में एक ओर कुल 28 हजार सैनिक जिनमें 20000 हजार घुड़सवार और 8000 पैदल सैनिक थे, जिनकी अगुवाई पेशवा बाजीराव-II कर रहे थे तो दूसरी ओर बॉम्बे नेटिव लाइट इन्फेंट्री के 500 महार सैनिक, जिसमें महज 250 घुड़सवार सैनिक ही थे। आप सोच सकते हैं कि सिर्फ 500 महार सैनिकों ने किस जज्बे से लड़ाई की होगी कि उन्होंने 28 हजार पेशवाओं को धूल चटा दिया।

दूसरे शब्दों में कहें तो एक ओर ब्राह्मण राज बचाने की फिराक में पेशवा थे तो दूसरी ओर पेशवाओं के पशुवत अत्याचारों से बदला चुकाने की फिराक में गुस्से से तमतमाए महार। आखिरकार इस घमासान युद्ध में पेशवा की शर्मनाक पराजय हुई। 500 लड़ाकों की छोटी सी सेना ने हजारों सैनिकों के साथ 12 घंटे तक वीरतापूर्वक लड़ाई लड़ी।

भेदभाव से पीड़ित अछूतों की इस युद्ध के प्रति दृढ़ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि महार रेजिमेंट के ज्यादातर सिपाही बिना पेट भर खाने और पानी के लड़ाई के पहले की रात 43 किलोमीटर पैदल चलकर युद्ध स्थल तक पहुंचे। यह वीरता की मिसाल है। इस युद्ध में मारे गए सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक चौकोर मीनार बनाया गया है, जिसे कोरेगांव स्तंभ के नाम से जाना जाता है। यह महार रेजिमेंट के साहस का प्रतीक है। इस मीनार पर उन शहीदों के नाम खुदे हुए हैं, जो इस लड़ाई में मारे गए थे। 1851 में इन्हें मेडल देकर सम्मानित किया गया।

इस युद्ध में पेशवा की हार के बाद पेशवाई खतम हो गयी थी और अंग्रेजों को इस भारत देश की सत्ता मिली। इसके फलस्वरूप अंग्रेजों ने इस भारत देश में शिक्षण का प्रचार किया, जो हजारों सालों से बहुजन समाज के लिए बंद था।

11 मार्च सन 1689 को  पेशवाओ ने हमारे शम्भाजी महाराज को खत्म कर उनके शरीर के अनगिनत टुकड़े कर तुलापुर नदी में फेक दिये थे और कहा कि जो भी इनको हाथ लगायेगा उसका क़त्ल कर दिया जायेगा। काफी समय तक कोई भी आगे नहीं आया पर महार जाति के एक पहलवान ने हिम्मत दिखाई और आगे आया जिसका नाम गणपत पहलवान था , वह शम्भाजी महाराज के सारे शरीर के हिस्सों को इकठ्ठा करके अपने घर लाया और उसकी सिलाई कर के मुखाअग्नि दी

शम्भाजी महाराज की समाधी आज भी उसी महारवाडे इलाके में स्थित है। ये सूचना मिलते ही पेशवाओ ने गणपत महार पहलवान का सर कलम कर दिया और समुची महार जाति को दिन में गाँव से बहार निकलने पर पाबन्दी लगा दी और कमर पे झाड़ू और गले में मटका डालने का फरमान लागू कर दिया था और पुरे पुणे शहर में यह खबर फैला दी कि गणपत महार पहलवान देवतुल्य हो गया है इसलिए वो भगवान की भेट चढ़ गया!   ।

शम्भाजी महाराज की मृत्यु के बाद महार जाति के लोगो पर खूब अत्याचार इन पेशवाओ (सनातनी ब्रह्मणो ) द्वारा किये जाने लगे थे।महार जाति शुरू से ही मार्शल जाति थी , पर पेशवाओ ने अब इन लोगो पर मार्शल लॉ (सेना में लड़ने पर रोक ) लगा दिया था।
    महार अब इनके जुल्म से तंग आ चुके थे और अपने स्वाभिमान और अधिकार के लिए आंदोलन करने की सोच रहे थे …..।
        उस दौरान अंग्रेज भारत में आये ही थे पर वो पेशवाओ की बलशाली सेना पर विजय नहीं कर पा रहे थे , तभी महार जाति का एक नवयुवक सिद्धनाक पेशवाओ से मिलने गया और कहने लगा की वैसे तो हमारी अंग्रेजो की ओर से लड़ने की कोई इच्छा नहीं है मगर तुम हमारे सारे अधिकार और सम्मान हमे दे देते है तो हम अंग्रेजो को यहाँ से भगा देंगें , इस पर पेशवाओ ने कहा की तुम्हे यहाँ सुई के बराबर भी जमीन नहीं मिलेगी। यह सुनते ही सिद्धनाक ने पेशवा को चेतावनी देते हुए कहाँ की अब तुमने अपनी मृत्यु को स्वयं ही निमंत्रण दे दिया है , और अब तुम्हे कोई नहीं बचा सकता , अब हम रण भूमि में ही मिलेंगे ।

अब सिद्धनाक अंग्रेजो से मिला और उनसे कहने लगा कि तुम हमे अपने अधिकार और सम्मान लौटा दो , तो हम आपकी तरफ से इन पेशवाओ से लड़ने के लिए तैयार है ।
    अंग्रेजो ने सिद्धनाक की बाते मान ली ।
   तब सिद्धनाक 500 महार सैनिको के साथ  शम्भाजी महाराज की समाधी पर जाता है और महाराज की समाधी को नमन करते हुए शपथ लेता है कि हम शाम्भाजी महाराज के खून का बदला जरूर लेंगे। और उसके बाद सात दिन तक चले युद्ध में भूखे प्यासे रहकर महारो के 500 वीरो ने पेशवाओ के 28000 सैनिकों के टुकड़े – टुकडे करके उनको नेस्तानाबूत कर दिया था
     वो दिन था 01 जनवरी  1818 इसलिए ये दिन “शौर्य दिवस ” नाम से जाना जाता  है ।
  जहाँ स्वयं बाबा साहेब डॉ भीम राव आंबेडकर जी ने इन महार वीरो के लिए अपने अश्रु बहाये थे और प्रत्येक साल 01 जनवरी को बाबा साहेब उन वीर योद्धाओं को श्रदांजली अर्पित करने के लिए जाते थे। तो आओ हम भी याद करे हमारे उन महान वीर योद्धाओं को जिन्होंने हमारे लिए इतनी बड़ी लड़ाई लड़ी थी ।
जय भीम ! जय भारतीय मूलनिवासी!

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