अजीत पवार ने राजनीति में अपने चाचा शरद पवार की उंगली पकड़कर कदम रखा और सियासत में आगे बढ़े हैं, लेकिन अपने चाचा की छांव से बाहर आते ही वो बेअसर हो गए. शरद पवार मराठा समुदाय के बड़े नेताओं में हैं और उनकी पकड़ इस समुदाय पर अच्छी खासी है.महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश जैसे-जैसे बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे एनसीपी प्रमुख और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार की सियासी चुनौती बढ़ती जा रही है. चाचा शरद पवार का तख्तापलट करने वाले अजीत पवार भले ही एकनाथ शिंदे की सत्ता में हिस्सेदार बन गए हो, लेकिन पहली ही सियासी परीक्षा में वो खुद को साबित नहीं कर सके. लोकसभा चुनाव के नतीजे न अजीत पवार के पक्ष में आए हैं और न ही अब बीजेपी और शिवसेना उन्हें तवज्जो दे रहे हैं. आरएसएस की तरफ से इशारों-इशारों में बीजेपी को अजीत पवार से नाता तोड़ने की सलाह दी जा रही है. ऐसे में अजीत पवार और उनकी पार्टी के लिए 2024 का विधानसभा चुनाव बड़ी टेंशन बना हुआ है.अजीत पवार को जिस राजनीतिक लाभ के उम्मीद में बीजेपी ने अपने साथ मिलाया था और डिप्टी सीएम की कुर्सी सौंपी थी, उसका सियासी फायदा लोकसभा चुनाव में नहीं मिल सका. इसके चलते ही बीजेपी अब अजीत पवार को बहुत ज्यादा सियासी अहमियत नहीं दे रही है. मोदी मंत्रिमंडल में अजीत पवार की एनसीपी को जगह नहीं मिल सकी. इतना ही नहीं बीजेपी के कई नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भी एनसीपी से अलग होने की बात कही है.अमित शाह के द्वारा शरद पवार पर निशाना साधे जाने के सवाल पर अजीत पवार भले ही चुप्पी साधे हों, लेकिन उनके नेता खुलकर शरद पवार के समर्थन में उतर गए हैं. अजीत पवार के कट्टर समर्थक पिंपरी के विधायक अन्ना बंसोडे ने शाह की टिप्पणी के लिए उनकी आलोचना की. उन्होंने कहा, ‘हमारे मन में पवार साहब के लिए अत्यंत सम्मान है. उन्होंने कहा कि अमित शाह को ऐसी टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी.
महाराष्ट्र की राजनीति के चक्रव्यूह में फंसे अजित पवार, कैसे सियासी वजूद को बचाए रखने की लड़ रहे जंग पढ़िए पूरी खबर
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