वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि ग़रीबों को मुफ़्त चावल-गेंहू बाँटे जाने का काम सरकार 2024 तक जारी रखेगी.
बुधवार को पेश हुए बजट के मुताबिक़ सरकार इस पर दो लाख करोड़ रूपए ख़र्च करेगी, जिसे निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण के दौरान एक ऐसा ‘भारत बनाने की कोशिश का हिस्सा बताया जिसमें सभी ख़ुशहाल हों और सबकी हिस्सेदारी हो.’
ग़रीबी रेखा से नीचे के लोगों को मुफ़्त राशन देने की योजना केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने साल 2020 में शुरू की थी जब कोविड के कारण लोगों के रोज़ी-रोज़गार पर भारी असर पड़ा था.
अब तक के आंकड़ों के मुताबिक़ इस पर पौन चार लाख करोड़ ख़र्च हो चुके हैं. बजट भाषण में भारतीय वित्त मंत्री ने कहा कि एक साल में सरकार दो लाख करोड़ रूपए ख़र्च करेगीपहले इस कार्यक्रम को दिसंबर 2022 में ही ख़त्म होना था.
वित मंत्रालय में सलाहकार रह चुके मोहन गुरुस्वामी कहते हैं कि मुफ़्त राशन बाँटे जाने को दो तरह से देखा जा सकता है- पहली तो ये इस दावे की पोल खोलता है कि अर्थव्यवस्था बेहतर हालत में पहुंच गई है और दूसरा ये कि चुनाव जब सामने आता है तो सरकारें उन योजनाओं के ऐलान करने लगती है जिन्हें अर्थशास्त्री ‘पोपुलिस्ट’ या लोकलुभावन कहते हैं.
दिलचस्प बात ये भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य सरकारों को आगाह कर चुके हैं कि वे ‘रेवड़ियाँ बाँटने की आदत’ से बाज़ आएँ, कई राज्य सरकारों ने इस टिप्पणी पर आपत्ति की थी.
इसी मामले में दायर की गई एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है जिसमें सुप्रीम कोर्ट संभवत: यह बता सकती है कि किन योजनाओं को लोक कल्याणकारी और किन योजनाओं को रेवड़ी माना जाना चाहिए.