महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर से गर्माने वाली है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब चुनाव आयोग फैसला करेगा कि असली शिवसेना किसकी है? शिंदे गुट या ठाकरे गुट? कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि असली शिवसेना और चुनाव चिन्ह पर फैसला चुनाव आयोग करेगा. महाराष्ट्र में इस साल सत्ता परिवर्तन हो गया था.
शिवसेना का ‘असली’ मालिक कौन होगा? उसका धनुष-बाण वाला चुनाव चिन्ह किसके पास जाएगा? एकनाथ शिंदे या उद्धव ठाकरे? अब इसका फैसला चुनाव आयोग करेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उद्धव ठाकरे गुट को झटका देते हुए कहा कि असली शिवसेना और पार्टी के चुनाव चिन्ह पर फैसला चुनाव आयोग कर सकता है. उद्धव ठाकरे गुट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी कि असली शिवसेना पर फैसला चुनाव आयोग नहीं कर सकता है. अदालत ने इसे खारिज कर दिया है.
महाराष्ट्र में इस साल जून में सत्ता परिवर्तन हो गया था. इसके बाद शिंदे गुट खुद को ‘असली’ शिवसेना बताते हुए पार्टी के चुनाव चिन्ह ‘धनुष-बाण’ पर भी दावा कर रहा है. ये मामला फिलहाल चुनाव आयोग में है. शिंदे गुट अभी भी खुद को ही असली शिवसेना बता रहा है. वहीं, शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे का कहना है कि चुनाव आयोग में सच की जीत होगी.
बहरहाल, शिवसेना किसकी होती है? ये तो चुनाव आयोग तय करेगा. लेकिन ये फैसला कैसे होगा? इसे समझ लेते हैं.
क्या कहता है नियम?
किसी राजनीतिक पार्टी पर किसका अधिकार होगा? इसका फैसला चुनाव आयोग करता है. चुनाव आयोग से ही पार्टी का चुनाव चिन्ह मिलता है और वही तय करता है कि किस गुट को पार्टी माना जाए.
जब एक पार्टी में दो अलग-अलग गुट दावा करते हैं, तो चुनाव आयोग दोनों पक्षों को बुलाता है और सुनवाई करता है. इसमें सबूत देखे जाते हैं. गिनती की जाती है. ये देखा जाता है कि बहुमत किस गुट के पास है? पार्टी के पदाधिकारी किस तरफ हैं? इसके बाद बहुमत जिस ओर होता है, उसे पार्टी माना जाता है.
अक्टूबर 1967 में जब एसपी सेन वर्मा मुख्य चुनाव आयुक्त बने, तो उन्होंने एक चुनाव चिन्ह आदेश बनाया, जिसे ‘सिम्बल ऑर्डर 1968’ कहा जाता है. इसके पैरा 15 में लिखा है कि किसी राजनीतिक पार्टी में विवाद या विलय की स्थिति में फैसला लेने का अधिकार सिर्फ चुनाव आयोग के पास है.
सुप्रीम कोर्ट ने भी पैरा 15 की वैधता को बरकरार रखा है. 1971 में सादिक अली बनाम चुनाव आयोग मामले में फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसकी वैधता को बरकरार रखा था.
कैसे होता है पार्टी किसके पास जाएगी?
पार्टी का असली मालिक कौन होगा? इसका फैसला मुख्य रूप से तीन चीजों पर होता है. पहला- चुने हुए प्रतिनिधि किस गुट के पास ज्यादा हैं? दूसरा- ऑफिस के पदाधिकारी किस ओर हैं? और तीसरा- संपत्तियां किस तरफ हैं?
लेकिन, किस धड़े को पार्टी माना जाएगा? इसका फैसला चुने हुए प्रतिनिधियों के बहुमत के आधार पर होता है. मसलन, जिस धड़े के पास ज्यादा चुने हुए सांसद-विधायक होंगे, उसे पार्टी माना जाएगा.
इसे इस उदाहरण से समझ सकते हैं. 2017 में समाजवादी पार्टी में टूट पड़ गई थी. तब अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव को हटा दिया था और खुद अध्यक्ष बन गए थे. बाद में शिवपाल यादव भी इस जंग में कूद गए थे. मामला चुनाव आयोग के पास पहुंचा था. चूंकि, ज्यादातर चुने हुए प्रतिनिधि अखिलेश यादव के साथ थे, इसलिए आयोग ने चुनाव चिन्ह उन्हें ही सौंपा. बाद में शिवपाल यादव ने अलग पार्टी बना ली थी.
शिंदे बनाम ठाकरे मामले में क्या हो सकता है?
शिवसेना के ‘असली’ दावेदार को लेकर शिंदे गुट और ठाकरे गुट के बीच लड़ाई चल रही है. मामला चुनाव आयोग के पास है. सुप्रीम कोर्ट के पास मामला जाने के बाद पार्टी के बंटवारे के मामले की कार्यवाही नहीं हो सकी थी. पर अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग ही इसका फैसला करेगा.
शिंदे गुट और ठाकरे गुट, दोनों ही खुद को असली शिवसेना बता रहे हैं. शिंदे गुट वाली शिवसेना के प्रवक्ता नरेश म्हास्के ने दावा किया है कि शिवसेना के 40 विधायक और 18 में से 12 सांसद उनके पास हैं. इनके अलावा 80% से ज्यादा जिला अध्यक्ष, पार्षद और नगर परिषद अध्यक्ष भी उनके साथ हैं.
अगर भविष्य में फिर साथ आए तो?
इस समय शिवसेना दो गुटों में बंट चुकी है. शिंदे गुट ने तो बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली है. वहीं, ठाकरे गुट विपक्ष में बैठा है. फिलहाल तो दोनों के फिर से साथ आने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है.
लेकिन भविष्य में अगर दोनों गुट फिर साथ आना चाहें तो क्या होगा? इस पर भी फैसला चुनाव आयोग ही करेगा. दोनों गुटों को आयोग के पास जाना होगा और बताना होगा कि अब हम साथ हैं और इसे ही पार्टी के तौर पर मान्यता दी जाए.