मुंबई, 19 सितंबर (भाषा) मुंबई में लोगों की मौत के बाद उन्हें दफनाने की जगह की कमी पर चिंता जताते हुए बंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार से पूछा कि जब कब्रिस्तान के लिए शहर में जगह नहीं है, तो ऐसे में गगनचुंबी इमारतें बनाने का क्या मतलब है। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति माधव जामदार की खंडपीठ ने स्थानीय नागरिक मोहम्मद फुरकान कुरैशी की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। याचिकाकर्ता ने सुन्नी मुस्लिमों के लिए महानगर में अलग कब्रिस्तान बनाने का अनुरोध किया था। महाराष्ट्र के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणि ने अदालत से कहा
मुंबई, 19 सितंबर (भाषा) मुंबई में लोगों की मौत के बाद उन्हें दफनाने की जगह की कमी पर चिंता जताते हुए बंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार से पूछा कि जब कब्रिस्तान के लिए शहर में जगह नहीं है, तो ऐसे में गगनचुंबी इमारतें बनाने का क्या मतलब है।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति माधव जामदार की खंडपीठ ने स्थानीय नागरिक मोहम्मद फुरकान कुरैशी की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। याचिकाकर्ता ने सुन्नी मुस्लिमों के लिए महानगर में अलग कब्रिस्तान बनाने का अनुरोध किया था।
महाराष्ट्र के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणि ने अदालत से कहा कि मुख्यमंत्री ने हिंदुओं, मुसलमानों और ईसाइयों के लिए बांद्रा में अंतिम संस्कार स्थल बनाने के लिए जमीन आवंटित करने का फैसला किया है।
हालांकि, उन्होंने कहा कि इस बाबत अधिसूचना अभी जारी नहीं की गयी है। उन्होंने प्रक्रिया पूरी करने के लिए दो और सप्ताह का समय मांगा।
पीठ ने कहा कि यह गंभीर समस्या है।
न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, ‘‘जब कब्रिस्तान के लिए जमीन नहीं है तो ऊंची-ऊंची इमारतों का क्या मतलब। आप ऊंची इमारतों की अनुमति देते रहते हैं और लोगों को यहां (मुंबई) आने के लिए कहते रहते हैं, लेकिन ऐसी बुनियादी सुविधाएं ही नहीं हैं।’’
अदालत ने मामले में अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद करना तय किया।
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